कुंडली में विष योग का प्रभाव (Kundli Mein Vish Yog Ka Prabhav)

          जन्म कुंडली में यहाँ शुभ योगों का निर्माण होता है तो वहीं कुछ अषुभ योगों का भी निर्माण होता है जो समय-समय पर जातक को शुभ एवं अषुभ फल प्रदान करते हैं। शनि और चंद्र की युति से विष योग नामक अशुभ योग निर्माण होता है। शनि और चंद्र का संयोग अगर जातक की कुंडली में हो तो ऐसे में उनकी आपस में दशा-अंतर्दशा के दौरान विकट फल मिलने की संभावना होती है। ज्योतिष में शनि ग्रह को जहर का कारक और चन्द्र को दूध का कारक मन जाता है। जब चंद्र के दूध में शनि का जहर मिल जाता है तो वह जहरीला होने के कारन सफेद से नीला (शनि, राहु) हो जाता है। जिससे जातक में चंद्र की चंचलता समाप्त हो जाती है और शनि की उदासी हावी होने से मानसिक रोग लग जाता है। यह योग जातक की माता को भी स्वास्थ्य से सम्बंधित समस्या प्रदान करता है। आइए जानते हैं कि विष योग कुंडली में कैसे निर्मित होता है :

जब चन्द्रमा और शनि किसी भाव में युति संबंध बनाते हों तो विष योग का निर्माण होता है।
जब चन्द्र और शनि विपरीत स्थिति में बैठ कर अपने-अपने स्थान से एक-दूसरे को देख रहे हो।
जब चंद्र पर शनि की ३, ७ एवं १०वीं दृष्टि पड़ रही हो।
जब कर्क राषि में पुष्य नक्षत्र में शनि हो और चन्द्रमा मकर राषि में श्रवण नक्षत्र का हो और दोनों का स्थान परिवर्तन योग हो या शनि और चन्द्र विपरीत स्थिति में हो और दोनों की एक दूसरे पर दृष्टि हो तब विष योग बनता है।
सूर्य अष्टम भाव में, चन्द्र षष्टम भाव में और शनि १२ वे भाव में होने पर भी विष योग का निर्माण होता है।
जन्म कुण्डली में आठवे स्थान पर राहू हो और शनि मेष, कर्क, सिंह, या वृष्चिक लग्न में हो तो विष योग का निर्माण होता है।

अमावस्या की काली रात जो की शनि की होती है उसमे चन्द्र नही निकलता है। इसी प्रकार शनि का पूर्ण अशुभ प्रभाव चन्द्र पर हो तो जातक को चन्द्र से संबंधित समस्यायों का सामना करना पड़ता है। चंद्र-शनि की युति से मानसिक बीमारी, भ्रम, रोग, दाम्पत्य जीवन में कष्ट आदि के साथ साथ जिस भाव में विष योग निर्मित होता है उस भाव का भी अशुभ फल प्राप्त होता है।

लग्न में विष योग बन रहा हो तो जातक जातक जीवन भर रोग-व्याधि से पीड़ित, दरिद्रता दाम्पत्य जीवन में कष्ट का सामना करना पड़ता है।
द्वितीय भाव में शनि-चंद्र का संयोग बने तो जातक जीवन भर धनाभाव से ग्रसित होता है।
तृतीय भाव में यह युति जातक के पराक्रम को कम कर देती है।
चतुर्थ भाव में सुख और मातृ सुख की न्यूनता लती है।
पंचम भाव में संतान व विवेक का नाश होता है।
छठे भाव में ऐसी युति शत्रु-रोग-ऋण में बढ़ोत्तरी करता है।
सप्तम भाव में यह युति का संयोग पति-पत्नी के बीच सामंजस्य को खत्म करता है।
अष्टम भाव में यह युति आयु नाश करती है।
नवम भाव में यह युति भाग्य हीन बनाता है।
दशम भाव में यह युति पिता से वैमनस्य व पद-प्रतिष्ठा में कमी।
ग्यारहवें भाव में यह युति एक्सिडेंट करवाने की संभावना बढ़ाने के साथ लाभ में न्यूनता लाती है।
बारहवें भाव में यह युति व्यय को आय से बहुत अधिक बढ़ाकर जातक का जीवन कष्टमय बना देने में सक्षम है।

विष योग के दुष प्रभाव को काम करने के लिए ज्योतिषयों द्वारा कुछ उपायों का निर्माण किया गया है। इनसे ‘विष योग’ के अषुभ फलों को कम किया जा सकता है।

शनिवार के दिन या शनि अमावस्या के दिन संध्या काल सूर्यास्त के पश्चात् श्री शनि देव की प्रतिमा पर या शिला पर तेल चढ़ाए, एक दीपक सरसो के तेल का जलाएं, दीपक में थोड़ा काला तिल एवं थोड़े काले उड़द डाल दें। इसके पश्चात् १० आक के पत्ते लें और काजल में थोड़ी सरसो का तेल मिला कर स्याही बना लें और लोहे की कील के माध्यम से प्रत्येक पत्ते पे शनि मंत्र का एक अक्षर लिखें। उदाहरण के तोर पर १. ऊॅ, २. शं, ३. श, ४. नै, ५. श् (आधा श् शंकरवाला) ६. च, ७. रा, ८. यै, ९. न, १०. मः इस प्रकार १० पत्तो में १० अक्षर हो जाते है, फिर इन पत्तो को काले धागे में माला का रूप देकर, मन ही मन शनि मंत्र का जाप भी करते हुए शनि देव की प्रतिमा या शिला पे चढ़ायें।
पीपल के पेड़ के ठीक नीचे एक पानी वाला नारियल सिर से सात बार उतार कर फोड़ दें और नारियल को प्रसाद के रूप में बॉट दें।
शनि मंदिर में या हनुमान जी के मंदिर में घड़े में पानी भरकर दान करें।
पूर्णिमा के दिन शिव मंदिर में रूद्राभिषेक करवायें।
गुड़, गुड़ की रेवड़ी, तिल के लड्डू का किसी शनि मंदिर में प्रसाद चढ़ाये और प्रसाद को बाँट दें और गाय, कुत्ते, एवं कौओ को भी खिलाए।
माता-पिता अपने से उम्र में जो अधिक हो अर्थात पिता माता समान हो उनका चरण छूकर आर्षीवाद ले।
शनिवार के दिन कुए में दूध चढ़ाये।
शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से आरम्भ कर प्रतिदिन रूद्राक्ष की माला से कम से कम पाँच माला महामृत्युन्जय मंत्र का जाप करें।
अपने गुरू एवं हनुमान जी का आवाहन करके हनुमान मंदिर में या पूजा स्थान में शुद्ध घी का दीपक जलाकर सुन्दर कांड का ४९ बार पाठ करें।
हनुमान जी को शुद्ध घी एवं सिन्दूर का चोला चढ़ा कर उनके दाहिने पैर का सिन्दूर अपने माथे पर लगाएं।

 

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संपर्क सूत्र : kalkajyotish@gmail.com

 

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ज्योतिष आचार्या
ममता वशिष्ट
अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
कालका ज्योतिष अनुसन्धान संसथान

 

3 thoughts on “कुंडली में विष योग का प्रभाव (Kundli Mein Vish Yog Ka Prabhav)

  1. पंडित जी नमस्कार मेरा नाम लक्ष्मीकांत द्विवेदी है जन्म तिथि 14 अप्रैल 1983 है समय दोपहर के 2:10 जन्म स्थान सागर मध्य प्रदेश
    मुझे बहुत मानसिक अशांति रहती है मन बहुत पीड़ित होता है शादी तो नहीं तय हो चुकी है लेकिन अभी तक नौकरी करियर को स्टेबल नहीं कर पाया हूं माता-पिता की आर्थिक स्थिति तो ठीक है लेकिन अपने दम पर धन नहीं कमा पाया हूं मेरी कुंडली में विष दोष है इस विष दोष की शांति के लिए कौन सी पूजा होती है वह बताएं और साथ में उपाय भी बताएं यदि अन्य कोई दोष कुंडली में है तो उसके बारे में भी जानकारी दें

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