गुरू ग्रह का अशुभ फल (Guru Greh Ka Ashubh Fal)

          नवग्रहों में बृहस्ती देव को सर्वोच्च पद प्राप्त है। यह धनु और मीन राशि के स्वामी हैं और सूर्य, मंगल, चंद्र इनके मित्र ग्रह हैं। शुक्र और बुध शत्रु ग्रह और शनि और राहु सम ग्रह हैं। बृहस्पति समस्त देवी-देवताओं के गुरु हैं। गुरु एक अति शुभ ग्रह है जो अपनी दशा महादशा में अत्यंत सुख प्रदान करने में सक्षम है। परन्तु कुछ परिस्थितियों में गुरु ग्रह भी अशुभ फल प्राण कर जातक के लिए बाधाएं एवं समस्याएं उत्पन कर देते हैं। आइए जानते हैं कुछ ऐसे योग जिसमे गुरु ग्रह भी अशुभ फल प्रदन करता है।

  • यदि कुंडली में गुरु अशुभ हो तो अच्छे कार्य के बाद भी अपयश मिलता है, आभूषण खो जाता है, सर के बाल जल्दी झड़ने लगते हैं, वचन टूट जाता है, व्यक्ति के द्वारा पूज्य व्यक्ति या धार्मिक क्रियाओं का अनजाने में ही अपमान हो जाता है या कोई धर्मग्रंथ नष्ट होता है।
  • यदि जातक की कुंडली में गुरू-राहू की युति १, ४, ५, ७, १०वे भाव के अतिरिक्त किसी भी भाव में हो तो वह जातक जीवन में जरूर शराब पिता है।
  • यदि २, ५, ९, १२वें भाव में बृहस्पति के शत्रु ग्रह हो या शत्रु ग्रह उसके साथ हो तो भी बृहस्पति मंदा फल देने लगता है।
  • यदि गोचर में गुरू चंद्रमा से ४, ६, ८, १० या १२वें भाव में आता है तो यह गुरू जातक को कष्ट दायक होता है। गुरु चन्द्रमा से ४थे भाव में आने पर माता को तथा १०वें भाव में आने पर पिता को तथा अन्य भावों में आने पर स्वयं को कष्टकारी होता है।
  • यदि कर्क लग्न हो और गुरु ७वें भाव में हो तो जातक ता दाम्पत्य जीवन बहुत कष्टमय होता।
  • यदि किसी स्त्री का गुरू अशुभ भावों ६, ८, १२वें भाव में होगा तो दाम्पत्य जीवन में अनावश्यक कष्ट जरूर देता है।
  • यदि गुरु बलहीन हो तो जातक को बलहीन, विवेकहीन, अन्यायी, कलंक, अपमान, राज दण्ड से भय आदि प्रदान करवाता है।
  • यदि मेष, वर्षभ, मिथुन, कर्क, सिंह, धनु, मकर, कुम्भ लग्नों में गुरू-शनि की युति होगी तो इस युति का कोई भी शुभ फल जातक को प्राप्त नहीं होता है।
  • यदि वर्षभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, वर्श्चिक, धनु, और मीन लग्न में गुरू-शुक्र की युति हो तो जातक को कोई शुभ फल प्राप्त नहीं होता है।
  • यदि गुरु अपने भाव से ६, ८, १२वें भाव में स्थित हो तो हानिकारक होता है यही स्थिति चंद लग्न से भी होती है।
  • यदि गुरू वर्षभ, मिथुन, कन्या, तुला अथवा मकर राशि का होकर १,४ ५,७,९,१०वें भाव में हो तो गुरू उस भाव से सम्बन्धीत अशुभ फल देता है।
  • यदि ९वें भाव में गुरू-शनि की युति हो अथवा दोनों की द्रष्टि ९वें भाव पर हो तो जातक सन्यासी प्रव्रत्ति का होगा है या सन्यासी होगा।

 

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ज्योतिष आचार्या
ममता वशिष्ट
अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
कालका ज्योतिष अनुसन्धान संसथान

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