मन्त्र क्या है (Mantra Kya Hai)

‘‘मन्त्रो हि गुप्त विज्ञानः’’

“अर्थात मन्त्र एक गुप्त विज्ञान है, जिससे गूढ़ रहस्य प्राप्त किये जा सकते हैं”

          विश्व के सब धर्मों में मन्त्रों को विशेष स्थान प्राप्त है। मन्त्र की शक्ति और स्वरुप की व्याख्या करने पर कहा जा सकता है कि मन्त्र अविनाशी है, सर्व व्यापक हैं, नित्य हैं और सर्व भूतों की योनि हैं। क्योंकि मन्त्र उच्चारण से हम अपने सद्गुरु, इष्ट, देवी-देवता एवं सर्व पारलौकिक शक्तियों से सम्पर्क साधकर विशेष आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

          जयादातर मन्त्रों की उत्पत्ति हमारे ऋषि मुनियो द्वारा ही की गयी हैं। हमारे ऋषि मुनियों ने शब्दों से उत्पन होने वाली ध्वनि एवं कम्पन को पहचाना और शब्दों को इस प्रकार ऐकत्रित किया कि उनका उच्चारण कर ब्रह्माण्ड की कीसी भी शक्ति या देवी देवता से विशेष कार्य हेतु सम्पर्क बनाया जा सके। मन्त्र शब्द में ‘मन्’ का तात्पर्य मन से है और ‘त्र’ का तात्पर्य शक्ति और रक्षा से है । मन्त्र जाप से ऐसी शक्तिशाली कम्पन उत्पन्न होती है जो हमारी प्रार्थना को परमात्मा तक पहुंचती है। अगर मन्त्र जप विधि के अनुसार नियमों का पालन करके किया जाये तो विशेष लाभ होता है।

मन्त्र जप के प्रकार :

  • वाचिक जप – वाचिक जप में मन्त्र का स्पष्ट उच्चारण किया जाता है।
  • उपांशु जप – उपांशु जप में ध्वनि फुसफुसाने जैसी होती है और थोड़े बहुत जीभ व होंठ हिलते हैं।
  • मानस जप – मानस जप में मन ही मन में जप होता है और इसमें जीभ व होंठ नहीं हिलते।

मन्त्र जप की विधि :

  • बैठने का आसान : मन्त्र जप में सही आसन जा चयन करना बहुत आवश्यक है। आसन कई प्रकार के होते हैं जैसे कि सुखासन, पद्मासन, वज्रासन और सिद्धासन। हम इनमें से किसी भी आसान का प्रयोग कर सकते हैं।
  • एकाग्रचित धयान अवस्था : मन्त्र जप में मन और ध्यान दोनों का ही एकाग्रचित होना अति आवशयक है। जिस देवता का मन्त्र उच्चारण करना है ऊनि का ध्यान मन में करना है। इससे बहरी दुनिया से धयान हटता है और प्रभु चरणों में लगता है।
  • सही समय अनिवार्य है : मन्त्र जप में सही समय का चुनाव बहुत जरूरी है। ब्रह्म मुहूर्त का समय बहुत अच्छा है। क्यूंकि वातावरण शांत होता है जिसमें एकाग्रता बढ़ती है। इसके साथ ही सन्धया का समय भी मन्त्र जप के लिए अच्छा है।
  • माला का चयन : जिस देवता के मन्त्र का जप करना है उनसे सम्बंधित माला से जप करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है। अन्यथा रुद्राक्ष या तुलसी की माला से भी जप करना उचित मन जाता है।
  • दिशा का चयन : मन्त्र जप में पूर्व या उत्तर दिशा ही सबसे उत्तम मनी जाती हैं।
  • माला और आसन पूजन : मन्त्र जप से पहले आसान पूजा कर माला को मस्तिष्क से लगाएं तत्पश्चात ही मन्त्र जप प्रारम्भ करें।
  • माला को गुप्त रखना : मन्त्र जप करते समय माला किसी भी दूसरे व्यक्ति को दिखाई नहीं देनी चाहिए। माला को  किसी कपड़े की थैली में रख कर ही मन्त्र जप करना चाहिए। जप के समय कभी न देखें की कितने मनके शेष बचे हैं क्यूंकि इससे मन्त्र जप का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है।
  • मन्त्र उच्चारण में शुद्धता : मन्त्र उच्चारण में किसी भी प्रकार की गलती नहीं होनी चाहिए। जैसा मन्त्र बताया गया हो वैसे ही उसका उच्चारण करना चाहिए अन्यथा परिणाम घातक हो सकते हैं।
  • माला फेरने के नियम : मन्त्र जप में माला को फेरते समय दायें हाथ की मध्यमा ऊँगली या अंगूठे का ही प्रयोग करें और माला पूर्ण होने पर सुमेरु को कभी भी पार नहीं करना चाहिए।
  • समय का नियम : मन्त्र जप प्रतिदिन एक ही समय पर प्रारम्भ करना चाहिए।

 

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ज्योतिष आचार्या
ममता वशिष्ट
अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
कालका ज्योतिष अनुसन्धान संसथान

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