यन्त्र क्या है (Yantra Kya Hai)
यन्त्र और मन्त्र को किसी भी प्रकार से अलग नहीं समझें यन्त्र एक शरीर है और मन्त्र उस शरीर की आत्मा। जैसे आत्मा शरीर में निवास करती है वैसे ही देवता सदैव यन्त्रों में निवास करते हैं। यन्त्र देवी देवताओं के प्रतीक एवं आवास ग्रह होते हैं। श्रीमद भगवत में कहा गया है कि देवी देवता की मूर्ति (प्रतिमा) के आभाव में यन्त्र का पूजन करना श्रेष्ठ है। यन्त्रों में अदभुत एवं रहस्यमय दिव्या शक्तियों के अपर भंडार होते हैं। इसलिए यन्त्र को सर्व सिद्धियों का द्वार भी कहा जाता है। अगर यन्त्र को किसी अच्छे महूरत में विधि विधान से बना कर शरीर पे धारण किया जाये तो यह एक अभेदनीय सुरक्षा कवच का कार्य करता है। ग्रह दोष में भी यन्त्र धारण करने पर उस ग्रह की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यन्त्र मुख्य रूप से चार प्रकार के होते हैं :
- रेखा प्रधान
- संख्या प्रधान
- आकृति प्रधान
- बीजाक्षर प्रधान
यन्त्र साधना एक ऐसी विधि है जिसमें लक्ष्य को शीघ्र ही प्राप्त किया जा सकता है। हर देवी देवता एवं ग्रह का यन्त्र बनाने एवं सिद्ध करने की विधि अलग होती है। किसी पर्व पर जैसे की दीपावली, लोहड़ी, दशहरा, होली या ग्रहणकाल में यन्त्र सरलता से सिद्ध हो जाते हैं। यन्त्र को बनाने में आम तोर पर भोज पत्र या कागज का प्रयोग किया जाता है। परन्तु यन्त्रों को बनाने में कई विशेषज्ञ धातु (ताम्बा, पीतल, अष्ट धातु, चंदी, स्वर्ण ) का प्रयोग भी करते हैं। इसके अतिरिक्त स्फटिक के यन्त्र भी बहुत प्रभावशाली होते हैं। यन्त्र तीन सिद्धांतों आकृति, क्रिया, शक्ति का ही एक संयुक्त रूप है। यन्त्र में ब्रह्माण्ड की समस्त रचनाएं समाहित हैं इसीलिए विशेषज्ञों द्वारा इसे विश्व-विशेष को दर्शाने वाली आकृति भी कहा जाता हैं।
यन्त्रों में मन्त्रों के साथ दिव्य शक्तियां समाहित होती हैं। इन यन्त्रों को सर्व कार्य सीधी हेतु उनके स्थान के अनुसार दुकान, घर, पूजा स्थान, कार्यालय, शिक्षास्थल अदि में रखा जा सकता है। यन्त्रों में नकारात्मक शक्तियों को समाप्त करने की असीम शक्ति होती है। यन्त्र को धारण करने, किसी विशेष स्थान पर रखने एवं उसकी पूजा करने से कार्य सिद्ध होते हैं और सफलता प्राप्ती होती है। यन्त्र वशीकरण, मारन, उच्चाटन, सम्मोहन, विद्वेषण, स्तम्भन, शत्रु बाधा निवारण के लिए रामबाण प्रयोग होते हैं। इसके अतिक्त यन्त्र किसी का भी अहित किये बिना साधक को या साधक द्वारा किसी भी व्यक्ति को सुख सौभाग्य, धन दौलत, यश, कीर्ति, मान सम्मान, ऐश्वर्य सुख व सौम्यता अदि प्रदान करने में सक्षम होते हैं।
इसलिए तन्त्र, मन्त्र एवं यन्त्र शास्त्र को एक पूर्ण विकसित आध्यात्मिक विज्ञान की संज्ञा दी जा सकती है। जिसका उद्देश्य मन, शरीर एवं आत्मा के विकास में एक संतुलन स्थापित कर मनुष्य का भौतिक एवं आध्यात्मिक विकास करना है। तन्त्र, मन्त्र एवं यन्त्र के बिना जीवन में पूर्णता प्राप्त करना असंभव है।