सूतक-पातक क्या है (Sootak Paatak Kya Hai)
घर में जब कोई बच्चा जन्म लेता है तो उस घर में रहने वाले जातक व उसके सम्पूर्ण कुल को सूतक लग जाता है और यदि कोई मृत्यु हो जाये तो पातक लगेगा। सूतक या पातक में मंदिर में प्रवेश नहीं करते किन्तु इसके पीछे क्या कारन है यह भी समझ लेना ज़रूरी है।
सूतक :
सूतक का सम्बन्ध “जन्म” के निम्मित से हुई अशुद्धि से है। जन्म के अवसर पर जो नाल काटा जाता है और जन्म होने की प्रक्रिया में अन्य प्रकार की जो हिंसा होती है, उसमे लगने वाले दोष/पाप के प्रायश्चित स्वरुप “सूतक” माना जाता है। जन्म के बाद नवजात की ३ और ४ पीढ़ी तक १० दिन का सूतक, ५ पीढ़ी तक ६ दिन का सूतक होता है। नवजात की माँ को ४५ दिन का सूतक रहता है। प्रसूति स्थान 1 माह तक अशुद्ध होता है, इसी लिए कई लोग जब भी अस्पताल से घर आते हैं तो स्नान करते हैं। एक रसोई में भोजन करने वालों के पीढ़ी नहीं गिनी जाती बल्कि वहाँ पूरा 10 दिन का सूतक माना है। अपनी पुत्री यदि पीहर में जनै तो हमे ३ दिन का, ससुराल में जन्म दे तो उन्हें १० दिन का सूतक रहता है। और हमे कोई सूतक नहीं रहता है। नौकर-चाकर यदि अपने घर में जन्म दे तो १ दिन का, बाहर दे तो हमे कोई सूतक नहीं। वहीं घर के पालतू गाय, भैंस, घोड़ी, बकरी इत्यादि को घर में बच्चा होने पर हमे १ दिन का सूतक रहता है। परन्तु घर से दूर-बाहर जन्म होने पर कोई सूतक नहीं रहता। बच्चा देने वाली गाय, भैंस और बकरी का दूध, क्रमशः १५ दिन, १० दिन और ८ दिन तक अशुद्ध रहता है।
पातक :
पातक का सम्बन्ध “मरण के” निम्मित से हुई अशुद्धि से है। मरण के अवसर पर दाह-संस्कार में इत्यादि में जो हिंसा होती है, उसमे लगने वाले दोष/पाप के प्रायश्चित स्वरुप “पातक” माना जाता है। मरण के बाद हुई अशुद्धि ३ पीढ़ी तक १२ दिन, ४ पीढ़ी तक १० दिन और ५ पीढ़ी तक ६ दिन पातक मन। जिस दिन दाह-संस्कार किया जाता है, उस दिन से पातक के दिनों की गणना होती है, न कि मृत्यु के दिन से। यदि घर का कोई सदस्य बाहर/विदेश में है, तो जिस दिन उसे सूचना मिलती है, उस दिन से शेष दिनों तक उसके पातक लगता है। अगर १२ दिन बाद सूचना मिले तो स्नान-मात्र करने से शुद्धि हो जाती है। किसी स्त्री के यदि गर्भपात हुआ हो तो, जितने माह का गर्भ पतित हुआ, उतने ही दिन का पातक मानना चाहिए। घर का कोई सदस्य मुनि-आर्यिका-तपस्वी बन गया हो तो, उसे घर में होने वाले जन्म-मरण का सूतक-पातक नहीं लगता है। किन्तु स्वयं उसका ही मरण हो जाने पर उसके घर वालों को १ दिन का पातक लगता है। किसी अन्य की शवयात्रा में जाने वाले को १ दिन का, मुर्दा छूने वाले को ३ दिन और मुर्दे को कन्धा देने वाले को ८ दिन की अशुद्धि जाननी चाहिए। घर में कोई आत्मघात करले तो ६ महीने का पातक मानना चाहिए। यदि कोई स्त्री अपने पति के मोह से जल मरे, बालक पढाई में फेल होकर या कोई अपने ऊपर दोष देकर मरता है तो इनका पातक ६ महीने का होता है। जिसके घर में इस प्रकार अपघात होता है, वहाँ छह महीने तक कोई बुद्धिमान मनुष्य भोजन अथवा जल भी ग्रहण नहीं करता है। वह मंदिर नहीं जाता और ना ही उस घर का द्रव्य मंदिर में चढ़ाया जाता है। अनाचारी स्त्री-पुरुष के हर समय ही पातक रहता है।
सूतक-पातक में निषेध :
सूतक-पातक की अवधि में “देव-शास्त्र-गुरु” का पूजन, प्रक्षाल, आहार आदि धार्मिक क्रियाएं वर्जित होती हैं। इन दिनों में मंदिर के उपकरणों को स्पर्श करने का भी निषेध है। यहाँ तक की गुल्लक में रुपया डालने का भी निषेध बताया है। परन्तु ये कहीं नहीं कहा कि सूतक-पातक में मंदिर जाना वर्जित है या मना है। मंदिर में जाना, देव-दर्शन, प्रदिक्षणा, जो पहले से याद हैं वो विनती/स्तुति बोलना, भाव-पूजा करना, हाथ की अँगुलियों पर जाप करना। यह सूतक-पातक आर्ष-ग्रंथों से मान्य है। कहीं कहीं लोग सूतक-पातक के दिनों में मंदिर ना जाकर इसकी समाप्ति के बाद मंदिर से गंधोदक लाकर शुद्धि के लिए घर-दुकान में छिड़कते हैं, ऐसा करके नियम से घोरंघोर पाप का बंध करते हैं। इन्हे समझना इसलिए ज़रूरी है, ताकि अब आगे घर-परिवार में हुए जन्म-मरण के अवसरों पर अनजाने से भी कहीं दोष का उपार्जन न हो।
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ज्योतिष आचार्या
ममता वशिष्ट
अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
कालका ज्योतिष अनुसन्धान संसथान