दस महाविद्या साधना (Dus Mahavidya Sadhna)

          दस महाविद्या को देवी दुर्गा के दस रूप माने जाते हैं। ये महाविद्याओं की शक्तियां ही पूरे संसार को चलाती हैं। देवी दुर्गा के ये सभी स्वरूप तंत्र साधना में बहुत उपयोगी और महत्वपूर्ण माने गए हैं। आइए जानते हैं मान्यता के अनुसार किस महाविद्या की पूजा तंत्र में किस इच्छा पूर्ति के लिए की जाती है। प्रत्येक साधक अपने जीवन में यह चाहता है कि उसे महाविद्याओं की साधना में सफलता प्राप्त हो और वह जीवन में दैविक शक्ति के सहयोग से भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करें। शक्ति मातृ स्वरूप जगदम्बा दस दिशाओं के अनुसार दस महाविद्याओं का रूप धारण करती है। जिन्हें महाकाली, तारा, श्री विद्या, त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुर-भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला के नाम से जाना जाता है।

महाकाली : महाकाली साधना से समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है। जब जीवन में प्रबल पुण्योदय होता है तभी साधक ऐसी प्रबल महिषासुर मर्दिनी, वाक् सिद्धि प्रदायक महाकाली साधना सम्पन्न करता है। महाकाली साधना को रोग मुक्ति, शत्रु नष्ट, तंत्र बाधा, भय, वाद-विवाद, धन हानि, कार्य सिद्धि, तन्त्र ज्ञान के लिए किया जाता है।

तारा : तारा महाविद्या साधना आर्थिक उन्नति एवं अन्य बाधाओं के निवारण के लिए की जाती है। इस साधना के सिद्ध होने पर साधक के जीवन में आय के नित्य नये स्रोत खुलने लगते हैं और ऐसा माना जाता है कि माँ भगवती तारा प्रसन्न होकर नित्य साधक को दो तोले सोना प्रदान करती है, जिससे साधक किसी भी प्रकार से दरिद्र न रहे ऐसा साधक पूर्ण ऐश्वर्यशाली जीवन व्यतीत कर जीवन में पूर्णता प्राप्त करता है और जीवन चक्र से मुक्त हो जाता है।

त्रिपुरसुंदरी : त्रिपुरसुंदरी महाविद्या की साधना से जीवन में सौन्दर्य, काम, सौभाग्य व शरीर सुख के साथ-साथ वशीकरण, सरस्वती सिद्धि, लक्ष्मी सिद्धि, आरोग्य आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। वास्तव में त्रिपुर सुन्दरी साधना को राजराजेश्वरी कहा गया है क्योंकि यह अपनी कृपा से साधारण व्यक्ति को भी राजा बनाने में समर्थ हैं।

भुवनेश्वरी : भुवनेश्वरी देवी को तीनों लोकों (स्वर्ग, पाताल तथा पृथ्वी) की महारानी कहा जाता है। भुवनेश्वरी साधना से चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, कर्म, मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह भुवनेश्वरी महाविद्या त्रि-शक्ति स्वरूप महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती के रूप में पूजी जाती है, इनकी साधना से जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है।

छिन्नमस्ता : छिन्नमस्ता महाविद्या की साधना से जीवन में सौन्दर्य, काम, सौभाग्य व आसुरी शक्तियों की प्राप्ति होती है। वास्तव में छिन्नमस्ता महाविद्या उच्चकोटि की महातंत्र साधना है जिसके करने से ऐसा कुछ रह ही नहीं जाता जो मनुष्य चाहता हो। यह साधना भौतिक और पूर्ण आध्यात्मिक उन्नति देने वाली साधना कही जाती हैं।

त्रिपुर भैरवी : त्रिपुर भैरवी महाविद्या महाकाली स्वरूप ही मानी जाती है। जिनकी साधना कल्पवृक्ष के समान शीघ्र फलदायी मानी गयी हैं। इस साधना को रोग मुक्ति, शत्रु नष्ट, तंत्र बाधा, भय, वाद-विवाद, धन हानि, कार्य सिद्धि, तन्त्र ज्ञान के लिए किया जाता है।

धूमावती : महाविद्या धूमावती, जो भगवान शिव की विधवा, कुरूप तथा अपवित्र देवी है, जिनका स्वरूप अत्यंत ही क्रोधित है, जो अपने शत्रु के लिए सदा भूखी रहती है। जिनकी साधना करने से सभी प्रकार के शत्रु जड़ से समाप्त हो जाते है। बर्बाद हो जाते है और इस लायक नहीं रहते की कभी सामने उपस्थित हो, आजकल के घोर कलयुग में इस साधना को अवश्य ही करना चाहिये।

बगलामुखी : दस महाविद्या में आठवें स्थान पर बगलामुखी विराजमान है, इनकी साधना से शत्रु की बुद्धि, मति, दंत तालु, गति स्तंभित हो जाती है, शत्रु पशु की तरह आपके सामने रहता है और कभी भविष्य में आपको हानि पहुँचाने की कोशिश नहीं करता। यह साधना शीघ्र प्रभाव दिखाती है जो शत्रु को नष्ट करके धन, कार्य सिद्धि, लक्ष्मी प्राप्ति के नित्य नयें रास्ते खोल देती है।

मातंगी : मातंगी महाविद्या साधना से तन्त्र असुरी, संगीत तथा ललित कलाओं में महारत प्राप्त होती है जो संगीत कलाओं में निपुण बनना चाहते हो उन्हें यह साधना अवश्य ही करनी चाहिए। इस साधना के द्वारा पूर्ण ग्रहस्त सुख की प्राप्ति होती है। जिनके घर में कलह बनी रहती है उन्हें यह साधना अवश्य ही करनी चाहिये।

कमला : कमला महाविद्या की साधना से जीवन में सुख, सौभाग्य, धन, लक्ष्मी, भूमि, वाहन, संतान, प्रतिष्ठा आरोग्य आसानी से प्राप्त किया जा सकता है, वास्तव में कमला साधना को “कमलेश्वरी” कहा गया है क्योंकि यह साधना साधारण व्यक्ति को भी राजा बनाने में समर्थ हैं।

दस महाविद्या साधना विधि : इस साधना को किसी भी गुरूवार या किसी भी महाविद्या जयंती से अथवा नवरात्रि पर्व में रात्रि के समय प्रारम्भ की जा सकती है। यह रात्रि के समय ही सम्पन्न की जाने वाली साधना है। यदि रात्रि में इसे सम्पन्न न करें, तो इसे ब्रह्म मुहूर्त में सूर्योदय के पूर्व भी सम्पन्न किया जा सकता है। इस साधना को करने के लिए साधक पूर्व की ओर मुख कर बैठें। अपने सामने चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर (शिव) गुरु चित्र स्थापित करें। चित्र के सामने सिंदूर या रोली से त्रिकोण बनाये, त्रिकोण में कोने का पहला हिस्सा ऊपर की तरफ़ होना चाहिए। त्रिकोण के बीच दस महाविद्या यंत्र को स्थापित कर यन्त्र के सामने दस चावलों की ढेरी बनाये। इन पर दस लघु नारियल स्थापित कर शुद्ध घी या तेल का दीपक जलाये, यह दीपक मन्त्र जप तक जलता रहना चाहिये, तत्पश्चात मन्त्र विधान अनुसार संकल्प आदि कर न्यास करें।

न्यास करने की विधि : बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से निम्न मंत्रों के साथ शरीर के विभिन्न अंगों को स्पर्श करें और ऐसी भावना मन में रखें कि वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र बन रहे है। ऐसा करने से अंग शक्तिशाली बनते है और चेतना प्राप्त होती है।

ॐ अं आं कं खं गं घं डं इं ईं ह्रदयाय नम( ह्रदय को स्पर्श करें और यह मंत्र बोले )
ॐ परम उं ऊं चं झं ञं ॠं शिरसे स्वाहा(सिर को स्पर्श करें)
ॐ तत्वाय टं ठं डं ढं णं लं लं शिखायै वषट्(शिखा को स्पर्श करें)
ॐ नारायणाय एं तं थं दं धं नं ऐं कवचाय हुम्(दोनों कंधों को स्पर्श करें)
ॐ गुरुभ्यो आं पं फं बं भं मं ओं एनटीआर त्रयाय वौषट्(दोनों नेत्रों को स्पर्श करें)
ॐ नम: अं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं अ: अस्त्राय फट्(हाथ सिर के ऊपर से घुमाकर चारों दिशाओं में चुटकी बजाएं)

दिशा बन्धन विधि : निम्न मंत्र बोलते हुए सभी दिशाओं में चावल फेंके –

ॐ गुरुभ्यो महाकाली मां पूर्वतो पातु।
ॐ गुरुभ्यो भगवती तारा आग्नेये मां पातु ।
ॐ गुरुभ्यो षोडशि दक्षिणे मां पातु ।
ॐ गुरुभ्यो भैरवी नैॠत्ये मां पातु ।
ॐ गुरुभ्यो भुवनेश्वरी पश्चिम मां पातु ।
ॐ गुरुभ्यो छिन्नमस्त वायव्ये मां पातु।
ॐ गुरुभ्यो मातंगी उतरे मां पातु ।
ॐ गुरुभ्यो धूमावती ऐशान्ये मां पातु।
ॐ गुरुभ्यो बागलामुखी उर्ध्वे मां पातु।
ॐ गुरुभ्यो कमलात्मिका भूमौ मां पातु।

यंत्र पूजन विधि : तत्पश्चात यंत्र को शुद्ध जल से स्नान कराकर तिलक, अक्षत, धुप, दीप, पुष्प से पूजन करें फिर चावल को कुंकुंम में मिलाकर निम्न मंत्र को बोलते हुए यंत्र पर चढ़ायें।

ॐ महाकाल्यै नम: महाकालीं स्थापयामि नम:
ॐ तारायै नम: तारां स्थापयामि नम:
ॐ षोडश्यै नम: षोडशीं स्थापयामि नम:
ॐ त्रिपुरी भैरवे नम: भैरवीं स्थापयामि नम:
ॐ भुवनेशवर्ये नम: छिन्नमस्तकां स्थापयामि नम:
ॐ मातंगीं नम: स्थापयामि नम:
ॐ धूमावत्यै नम: धूमावतीन स्थापयामि
ॐ बगलायै नम: बगलां स्थापयामि नम:
ॐ कमलायै नम: कमलां स्थापयामि नम:

ध्यान विधि : इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर माँ भगवती दस महाविद्याओं का ध्यान करके पूजन करें। धुप, दीप, चावल, पुष्प से तदनन्तर दस महाविद्या मन्त्र का जाप करें।

माया कुण्डलिनी क्रिया मधुमती काली कलामलिनी,
मातंगी विजया जया भगवती देवी शिव शाम्भवी।
शक्ति: शंकरवल्लभा त्रिनयना वाग्वादिनी भैरवी,
ह्रींकारी त्रिपुरी परात्परमयी माता कुमारीत्यसि ll

पूजन सम्पन्न कर सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित ”विजय सिद्धि माला” से निम्न मंत्र की २३ माला ११ दिन तक मंत्र जप करें।

ll ॐ निं ह्लीं क्रीं ह्रीं गुरुभ्यो श्रीं ऐं स्त्रीं नम: ll

Om Nim Hleem Kreem Hreem Gurubhyo Shreem Ayeim Streem Namah

          यह ग्यारह दिन की साधना है आप चाहे तो इसी तरह से सवा लाख मन्त्र जाप कर सकते है। मन्त्र जाप के बीच साधना के नियमों का पालन अवश्य करें। भय रहित होकर पूर्ण आस्था के साथ ग्यारह दिन तक दस महाविद्या मंत्र जप करें। नित्य जाप करने से पहले नित्य संक्षिप्त पूजन अवश्य करें। साधना के बारे में जानकारी गुप्त रखें। ग्यारह दिन तक मन्त्र का जाप करने के बाद जिस मन्त्र का आपने जाप किया है उसका दशांश या संक्षिप्त हवन पलाश के पुष्प, शुद्ध घी, हवन सामग्री में मिलाकर करें। हवन के पश्चात् दस महाविद्या यंत्र को अपने घर के मंदिर या तिजोरी में लाल वस्त्र से बांधकर रख दें और बाकि बची पूजा सामग्री को नदी या किसी पीपल के नीचे विसर्जित कर दें। इस तरह करने से यह साधना पूर्ण मानी जाती है।

          दस महाविद्या साधक के संकल्प सहित कार्य को भविष्य में शीघ्र ही पूर्ण करती है। दस महाविद्या साधना से दस महाविद्या की शक्ति प्राप्त हो जाती है, उसको अलग-अलग साधना करने की ज़रूरत नहीं होती, ऐसा साधक अपने जीवन में पूर्ण भोौतिक आध्यात्मिक सुख भोगता हुआ, अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है। ऐसा साधक सिद्ध पुरुष बन जाता है, सिद्धियाँ उसके सामने नृत्य करती है। वह सभी दृष्टियों से पूर्ण होता है, पूजनीय होता है, उसकी मृत्यु के बाद भी उसकी यथा गाथा अक्षुण बनी रहती है।

 

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ज्योतिष आचार्या
ममता वशिष्ट
अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
कालका ज्योतिष अनुसन्धान संसथान

6 thoughts on “दस महाविद्या साधना (Dus Mahavidya Sadhna)

  1. Pl tell I puer vegetarian last 6 year not take egg also in any mistake I take some food involved non-veg and take daily whisky and daily puja of dhumavati in shamshan baglamukhi matangi Mai or dusmahavidha puja Hanuman chalisa pl guide I suffer in full tension so I take pl guide

    1. this will ruin your personal & professional life…stop non veg & whisky or stop puja..choice is your what u want to adopt.

  2. Mere her karya me hamesha kuch na kuch badha bana rahta hai Kya Mai dasmahavidha nap kar sakti hoon kirpya margdarshan karen

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