विवाह एवं ग्रह (Vivah Evam Greh)

किसी भी जातक के विवाह हेतु तीन ग्रह वृहस्पति,शुक्र एवं होती है। जब किसी व्यक्ति की कुण्डली से दांपत्य का विचार किया जाता है, तो इन तीन ग्रहों का विश्लेषण किया जाता है। इन तीनों ग्रहों कि स्थिति को समझने के बाद ही व्यक्ति के दांपत्य जीवन के विषय में कुछ कहना सही रहता है। आईये यहां हम दाम्पत्य जीवन से जुडे तीन मुख्य ग्रहों को समझने का प्रयास करते है जानते हैं के कैसे दांपत्य प्रभाव डालते हैं।

वृहस्पति ग्रह :

  • सुखी दाम्पत्य जीवन के लिये भावी वर-वधू की कुण्डली में गुरु पाप प्रभाव से मुक्त होना चाहिए। गुरु की शुभ दृ्ष्टि सप्तम भाव पर हों तो वैवाहिक जीवन में परेशानियों व दिक्कतों के बाद भो अलगाव की स्थिति नहीं बनती है। अर्थात गुरु की शुभता वर-वधू का साथ व उसके विवाह को बनाये रखती है। गुरु दाम्पत्य जीवन की बाधाओं को दूर करने के साथ-साथ, संतान का कारक ग्रह भी है। अगर कुण्डली में गुरु पीडित हों तो सर्वप्रथम तो विवाह में विलम्ब होगा, तथा उसके बाद संतान प्राप्ति में भी परेशानियां आती है। सुखी दाम्पत्य जीवन के लिये संतान का समय पर होना आवश्यक समझा जाता है। विवाह के बाद सर्वप्रथम संतान का ही विचार किया जाता है। अगर गुरु किसी पापी ग्रह के प्रभाव से दूषित हों तो संतान प्राप्ति में बाधाएं आती है। जब गुरु पर पाप प्रभाव हों तथा गुरु पापी ग्रह की राशि में भी स्थित हों तो निश्चित रुप से दाम्पत्य जीवन में अनेक प्रकार की समस्यायें आने की संभावनाएं बनती है।

शुक्र ग्रह :

  • शुक्र विवाह का कारक ग्रह है। वैवाहिक सुख की प्राप्ति के लिये शुक्र का कुण्डली में सुस्थिर होना आवश्यक होता है। जब पति-पत्नी दोनों की ही कुण्डली में शुक्र पूर्ण रुप से पाप प्रभाव से मुक्त हो तब ही विवाह के बाद संबन्धों में सुख की संभावनाएं बनती है। इसके साथ-साथ शुक्र का पूर्ण बली व शुभ होना भी जरूरी होता है। शुक्र को वैवाहिक संबन्धों का कारक ग्रह कहा जाता है। कुण्डली में शुक्र का किसी भी अशुभ स्थिति में होना पति अथवा पत्नी में से किसी के जीवन साथी के अलावा अन्यत्र संबन्धों की ओर झुकाव होने की संभावनाएं बनाता है। इसलिये शुक्र की शुभ स्थिति दाम्पत्य जीवन के सुख को प्रभावित करती है। कुण्डली में शुक्र की शुभाशुभ स्थिति के आधार पर ही दाम्पत्य जीवन में आने वाले सुख का आकलन किया जा सकता है। इसलिये जब शुक्र बली हों, पाप प्रभाव से मुक्त हों, किसी उच्च ग्रह के साथ किसी शुभ भाव में बैठा हों अथवा शुभ ग्रह से दृ्ष्ट हों तो दाम्पत्य सुख में कमी नहीं होती है। उपरोक्त ये योग जब कुण्डली में नहीं होते है तब स्थिति इसके विपरीत होती है। शुक्र अगर स्वयं बली है, स्व अथवा उच्च राशि में स्थित हो केन्द्र या त्रिकोण में हों तब भी अच्छा दाम्पत्य सुख प्राप्त होता है। इसके विपरीत जब त्रिक भाव, नीच का अथवा शत्रु क्षेत्र में बैठा हों अस्त अथवा किसी पापी ग्रह से दृ्ष्ट अथवा पापी ग्रह के साथ में बैठा हों तब दाम्पत्य जीवन के लिये अशुभ योग बनता है। यहां तक की ऎसे योग के कारण पति-पत्नी के अलगाव की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है। इसके अलावा शुक्र, मंगल का संबन्ध व्यक्ति की अत्यधिक रुचि वैवाहिक सम्बन्धों में होने की सम्भावनाएं बनाती है। यह योग इन संबन्धों में व्यक्ति के हिंसक प्रवृ्ति अपनाने का भी संकेत करता है। इसलिये विवाह के समय कुण्डलियों की जांच करते समय शुक्र का भी गहराई से अध्ययन करना चाहिए.

मंगल ग्रह :

  • मंगल की जांच किये बिना विवाह के पक्ष से कुण्डलियों का अध्ययन पूरा ही नहीं होता है। भावी वर-वधू की कुण्डलियों का विश्लेषण करते समय सबसे पहले कुण्डली में मंगल की स्थिति पर विचार किया जाता है। मंगल किन भावों में स्थित है, कौन से ग्रहों से द्रष्टि संबन्ध बना रहा है तथा किन ग्रहों से युति संबन्ध में है। इन सभी बातों की बारीकी से जांच की जाती है। मंगल के सहयोग से मांगलिक योग का निर्माण होता है। वैवाहिक जीवन में मांगलिक योग को इतना अधिक महत्वपूर्ण बना दिया गया है कि जो लोग ज्योतिष शास्त्र में विश्वास नहीं करते है। अथवा जिन्हें विवाह से पूर्व कुण्डलियों की जांच करना अनुकुल नहीं लगता है वे भी यह जान लेना चाहते है कि वर-वधू की कुण्डलियों में मांगलिक योग बन रहा है या नहीं। चूंकि विवाह के बाद सभी दाम्पत्य जीवन में सुख की कामना करते है। जबकि मांगलिक योग से इन इसमें कमी होती है। जब मंगल कुंण्डली के लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम व द्वादश भाव में स्थित होता है तो व्यक्ति मांगलिक होता है। परन्तु मंगल का इन भावों में स्थित होने के अलावा भी मंगल के कारण वैवाहिक जीवन के सुख में कमी आने की अनेक संभावनाएं बनती है। अनेक बार ऐसा होता है कि कुण्डली में मांगलिक योग बनता है परन्तु कुण्डली के अन्य योगों से इस योग की अशुभता में कमी हो रही होती है। ऐसे में अपूर्ण जानकारी के कारण वर-वधू अपने मन में मांगलिक योग से प्राप्त होने वाले अशुभ प्रभाव को लेकर भयभीत होते रहते है। बेवजह की बातों को लेकर अनेक प्रकार के भ्रम भी बनाये रखते है। जो के सही नहीं है। विवाह के बाद एक नये जीवन में प्रवेश करते समय मन में दाम्पत्य जीवन को लेकर किसी भी प्रकार का भ्रम नहीं रखना चाहिए।

इस लिए कुंडली मिलान करते समाये इन तीनो ग्रहों का बहुत ध्यान से अध्यन करना चाहिए।

 

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ज्योतिष आचार्या
ममता वशिष्ट
अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
कालका ज्योतिष अनुसन्धान संसथान

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