निर्जला एकादशी एवं व्रत कथा (Nirjala Ekadashi Evam Vrat Katha)

          ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को “निर्जला एकादशी” कहते है इस व्रत मे पानी पीना वर्जित है। इसिलिये इसे निर्जला एकादशी कहते है। व्रतों में निर्जला एकादशी का व्रत सबसे ज्यादा कठिन माना जाता है। वर्ष में एक बार ग्रीष्म ऋतु के घोर तपते दिनों में किया जाने वाला उपवास, जिसमें पानी भी नहीं पिया जाए, निर्जल उपवास है। एकादशी दो तरह की है- विद्धा और शुद्धा। सूर्योदय के समय, दशमी तिथि होने पर एकादशी विद्धा और दशमी से रहित एकादशी हो तो शुद्धा एकादशी होती है। उपवास के लिए दशमी से युक्त एकादशी का व्रत करने की मनाही है।

उपवास की विधि :

          विधि के तौर पर प्रथम भगवान का पूजन, फिर गौदान, ब्राह्मणों को मिष्ठान्न व दक्षिणा देनी चाहिए तथा जल से भरे कलश का दान अवश्य करना चाहिए। निर्जला के दिन अन्न, वस्त्र, उपाहन (जूती) आदि का दान भी करना चाहिए। लेकिन जरूरी उपवास है। बिना पानी और भोजन के किए गए उपवास से प्रकृति भी किन्हीं अंशों में समृद्ध होती है। कुछ नहीं तो व्यक्ति को प्रकृति के साधनों का उपयोग करने की सीख तो मिलती है। निर्जला एकादशी से ही साल की चौबीसी एकादशी का वृत प्रारंभ किया जाता है जिसमे शास्त्र सम्मत फलाहार की ही मान्यता होती है |

निर्जला एकादशी व्रत कथा :

          एक बार महर्षि व्यास पांडवो के यहाँ पधारे। भीम ने महर्षि व्यास से कहा, भगवान ! युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुन्ती और द्रौपदी सभी एकादशी का व्रत करते है और मुझसे भी व्रत रख्ने को कहते है परन्तु मैं बिना खाए रह नही सकता है इसलिए चौबीस एकादशियो पर निरहार रहने का कष्ट साधना से बचाकर मुझे कोई ऐसा व्रत बताईये जिसे करने में मुझे विशेष असुविधा न हो और सबका फल भी मुझे मिल जाये। महर्षि व्यास जानते थे कि भीम के उदर में बृक नामक अग्नि है इसलिए अधिक मात्रा में भोजन करने पर भ उसकी भूख शान्त नही होती है महर्षि ने भीम से कहा तुम ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी का व्रत रखा करो। इस व्रत मे स्नान आचमन मे पानी पीने से दोष नही होता है इस व्रत से अन्य तेईस एकादशियो के पुण्य का लाभ भी मिलेगा तुम जीवन पर्यन्त इस व्रत का पालन करो भीम ने बडे साहस के साथ निर्जला एकादशी व्रत किया, जिसके परिणाम स्वरूप प्रातः होते होते वह सज्ञाहीन हो गया तब पांडवो ने गगाजल, तुलसी चरणामृत प्रसाद, देकर उनकी मुर्छा दुर की। इसलिए इसे भीमसेन एकादशी भी कहते हैं।

 

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ज्योतिष आचार्या
ममता वशिष्ट
अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
कालका ज्योतिष अनुसन्धान संसथान

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