डॉ: नारायण दत्त श्रीमाली (निखिलेश्वरानंद) जी की जीवनी (Dr. Narayan Dutt Shrimali (Nikhileshwaranand) Ji Ki Jeevni)
ॐ गुं गुरूभ्यो नमः
ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरूभ्यो नमः
सद्गुरूदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली (निखिलेश्वरानंद) जी का जन्म २१ अप्रैल १९३५ में राजस्थान में खरन्टिया क्षेत्र में हुआ। गुरुदेव जी के पिता श्री जी का नाम पंडित मुल्तान चन्द्र श्रीमाली था। आप का सन्यासी नाम श्री स्वामी निखिलेश्वरानंद जी महाराज था जो के उनके गुरुदेव जी द्वारा दिया गया था। गुरु जी ने राजस्थान विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिन्दी) सं १९६३ में की और पी.एच.डी. (हिन्दी) जोधपुर विश्वविद्यालय से १९६५ में की।
आपने प्राच्य विद्याओं दर्शन, मनोविज्ञान, परामनोविज्ञान, आयुर्वेद, योग, ध्यान, सम्मोहन विज्ञानं एवं अन्य रहस्यमयी विद्याओं के क्षेत्र में विशेष रूचि रखते हुए उनके पुनर्स्थापन में विशेष कार्य किया। आपने लगभग सौ से ज्यादा ग्रन्थ – मन्त्र-तंत्र, सम्मोहन, योग, आयुर्वेद, ज्योतिष एवं अन्य विधाओं पर लिखे हैं। जिनमें से प्रमुख हैं – प्रैक्टिकल हिप्नोटिज्म, मन्त्र रहस्य, तांत्रिक सिद्धियाँ, वृहद हस्तरेखा शास्त्र, श्मशान भैरवी (उपन्यास), हिमालय के योगियों की गुप्त सिद्धियाँ, गोपनीय दुर्लभ मंत्रों के रहस्य, तंत्र साधनायें, कुण्डलिनी नाद ब्रह्म, फिर दूर कहीं पायल खनकी, ध्यान, धरना और समाधी, क्रिया योग, हिमालय का सिद्धयोगी, गुरु रहस्य, सूर्य सिद्धांत, स्वर्ण तन्त्रं आदि।
भारतीय प्राच्य विद्याओं मन्त्र, तंत्र, यंत्र, योग और आयुर्वेद के क्षेत्र में अनेक उपाधि एवं अलंकारों से आपका सम्मान हुआ हैं। पराविज्ञान परिषद् वाराणसी में सन् १९८७ में आपको “तंत्र – शिरोमणि” उपाधि से विभूषित किया। मन्त्र – संसथान उज्जैन में १९८८ में आपको मन्त्र – शिरोमणि उपाधि से अलंकृत किया। भूतपूर्व उपराष्ट्रपति डॉ. बी.डी. जत्ती ने सन् १९८२ में आपको महा महोपाध्याय की उपाधि से सम्मानित किया। उपराष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा ने १९८९ में समाज शिरोमणि की उपाधि प्रदान कर उपराष्ट्रपति भवन में डॉ. श्रीमाली का सम्मान कर गौरवान्वित किया। नेपाल के भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री भट्टराई ने १९९१ में उनके सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में विशेष योगदान के लिए नेपाल में आपको सम्मानित किया।
भारत की राजधानी दिल्ली में आयोजित होने वाली विश्व ज्योतिष सम्मलेन १९७१ में आपने कई देशों के प्रतिनिधियों के बीच अध्यक्ष पद सुशोभित किया। सन् १९८१ से अब तक अधिकांश अखिल भारतीय ज्योतिष सम्मेलनों के अध्यक्ष रहे।
विशेष योगदान :
सम्मलेन, सेमिनार एवं अभिभाषणों के सन्दर्भ में आप विश्व के लगभग सभी देशों की यात्रा कर चुके हैं। आपने तीर्थ स्थानों एवं भारत के विशिष्ट पूजा स्थलों पर आध्यात्मिक एवं धार्मिक द्रष्टिकोण से विशेष कार्य संपन्न किये हैं। उनके एतिहासिक एवं धार्मिक महत्वपूर्ण द्रष्टिकोण को प्रामाणिकता के साथ पुनर्स्थापित किया हैं। सभी १०८ उपनिषदों पर आपने कार्य किया हैं, उनके गहन दर्शन एवं ज्ञान को सरल भाषा में प्रस्तुत कर जन सामान्य के लिए विशेष योगदान दिया हैं। अब २३ उपनिषदों का प्रकाशन हो रहा हैं। आप मन्त्र के क्षेत्र में आप एक स्तम्भ के रूप में जाने जाते हैं, तंत्र जैसी लुप्त हुयी गोपनीय विद्याओं को डॉ. श्रीमाली जी ने सर्वग्राह्य बनाया हैं। अपने जीवन में कई तांत्रिक, मान्त्रिक सम्मेलनों की अध्यक्षता की हैं। भारत की प्रतिष्ठित पत्र -पत्रिकाओं में ४० से भी अधिक शोध लेख मंत्रों के प्रभाव एवं प्रामाणिकता पर प्रकाशित कर चुके हैं। आप पुरे विश्व में अभी तक कई स्थानों पर यज्ञ करा चुके हैं, जो विश्व बंधुत्व एवं विश्व शांति की दिशा में अद्वितीय कार्य हैं। योग, मन्त्र, तंत्र, यंत्र, आयुर्वेद विद्याओं के नाम से अभी तक सैकडो साधना शिविर आपके दिशा निर्देश में संपन्न हो चुके हैं।
Books by Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji :-
- Practical Palmistry
- Practical Hypnotism
- The Power of Tantra
- Mantra Rahasya
- Meditation
- Dhyan, Dharana aur Samadhi
- Kundalini Tantra
- Alchemy Tantra
- Activation of Third Eye
- Guru Gita
- Fragrance of Devotion
- Beauty – A Joy forever
- Kundalini naad Brahma
- Essence of Shaktipat
- Wealth and Prosperity
- The Celestial Nymphs
- The Ten Mahavidyas
- Gopniya Durlabh Mantron Ke Rahasya.
- Rahasmaya Agyaat tatntron ki khoj men.
- Shmashaan bhairavi.
- Himalaya ke yogiyon ki gupt siddhiyaan.
- Rahasyamaya gopniya siddhiyaan.
- Phir Dur Kahi Payal Khanki
- Yajna Sar
- Shishyopanishad
- Durlabhopanishad
- Siddhashram
- Hansa Udahoon Gagan Ki Oar
- Mein Sugandh Ka Jhonka Hoon
- Jhar Jhar Amrit Jharei
- Nikhileshwaranand Chintan
- Nikhileshwaranand Rahasya
- Kundalini Yatra- Muladhar Sey Sahastrar Tak
- Soundarya
- Mein Baahen Feilaaye Khada Hoon
- Hastrekha vigyan aur panchanguli sadhana.
ब्रह्मवैवर्त पुराण में व्यास मुनि ने स्पष्ट लिखा है, कि भगवान् के अवतारों स्वरुप में दस गुण अवश्य ही परिलक्षित होंगे और इन्हीं दस गुणों के आधार पर संसार उन्हें पहिचानेगा।
तपोनिष्ठः मुनिश्रेष्ठः मानवानां हितेक्षणः ।
ऋषिधर्मत्वमापन्नः योगी योगविदां वरः
दार्शनिकः कविश्रेष्ठः उपदेष्टा नीतिकृत्तथा ।
युगकर्तानुमन्ता च निखिलः निखिलेश्वरः ॥
एभिर्दशगुणैः प्रीतः सत्यधर्मपरायणः ।
अवतारं गृहीत्चैव अभूच्च गुरुणां गुरुः ॥
सदगुरुदेव पूज्यपाद डॉ नारायणदत्त श्रीमाली जी, संन्यासी स्वरुप निखिलेश्वरानंद जी का विवेचन आज यदि महर्षि व्यास द्वारा उध्दृत दस गुणों के आधार पर किया जाए, तो निश्चय ही सदगुरुदेव अवतारी पुरूष हैं, जिन्होनें अपने सांसारिक जीवन का प्रारम्भ एक सुसंस्कृत ब्राह्मण परिवार में किया – सुदूर पिछडा रेगिस्तानी गांव था। जब इनका जन्म हुआ तो माता-पिता को प्रेरणा हुई, कि इस बालक का नाम रखा जाए – ‘नारायण’।
यह नारायण नाम धारण करना और उस नारायण तत्व का निरंतर विस्तार केवल युगपुरुष नारायण दत्त श्रीमाली के लिए ही सम्भव था, जिन्होनें अपने अल्पकालीन भौतिक जेवण में शिक्षा का उच्चतम आयाम ग्रहण कर पी.एच.डी. अर्थात डाक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त की।
।।सद्गुरुं चरण कमलेभ्यो नमः।।
Jai Sadgurudev
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