कुंडली में शुभ योग एवं फल (Kundli Mein Shubh Yog Evam Fal)

          ज्योतिष सूत्र के अनुसार जब सूर्य एंव चन्द्रमा के अंशो में दूरी होती है तब दूसरे ग्रहो के आपस में मिलने से योगों का निर्माण होता है। ज्योतिष में योगों का बहुत महत्त्व है। ज्योतिष विद्या ९ ग्रहों, १२ राशियों और २७ नक्षत्रों का समावेश है जिसमें सभी की अपनी अलग महत्ता है। सभी ग्रहों का अपना अलग स्वाभाव है इनमें कुछ ग्रह नकारात्मक या पापी होते है जैसे राहु, केतु, मंगल और शनि। यदि यह ग्रह कुंडली में मारक या अशुभ भाव में बैठे हों तो व्यक्ति को भारी क्षति का सामना करना पड़ता है। जन्म कुंडली में ग्रहों के योग से ही जातक के मंगल और अमंगल भविष्य का पूर्वानुमान लगाया जाता है और शुभ एवं अशुभ योग बताये जाते है। आइए अब जानते हैं कि ज्योतिष्य शुभ योग जातक के जीवन में किस प्रकार अपना प्रभाव डालते है :

 

सरस्वती योग:

जब शुक्र, बृहस्पति और बुध ग्रह एक दूसरे के साथ में हों या फिर केंद्र में बैठकर एक दुसरे के साथ सम्बन्ध बना रहे हों। युति या दृष्टि किसी भी प्रकार से एक दूसरे से संबंध बना रहे हों। इस योग से जातक को मां सरस्वती की कृपा दृष्टि, कला, ज्ञान, संगीत, लेखन एवं शिक्षा के क्षेत्र में विशेष ख्याति की प्राप्ति होती है।

महालक्ष्मी योग :

जब बृहस्पति द्वितीय भाव का स्वामी हो कर एकादश भाव में बैठकर द्वितीय भाव पर दृष्टि डाल रहा हो तो महालक्ष्मी योग बनता है। यह योग बहुत ही शुभ माना जाता है। इस योग से जातक की दरिद्रता दूर होती है।

नृप योग :

जब तीन या तीन से अधिक ग्रह उच्च के होकर कुंडली में विराजमान हो तो नृप योग बनता है। इस योग से जातक को राजा जैसा जीवन एवं राजनीति में उच्च स्थान की प्राप्ति होती है।

गजकेसरी योग :

जब चंद्रमा से केंद्र स्थान में १, ४, ७ या १० वें में बृहस्पति हो या कीसी भी घर में एक साथ चंद्र-बृहस्पति बैठे हों तो गजकेसरी योग बनता है। अगर जातक का लग्न मेष, कर्क, धनु या मीन हो तो यह योग कारक एवं प्रभाव माना जाता है। इस योग से जातक बहुत ही भाग्यशाली होता है और वो कभी भी अभाव में जीवन व्यतीत नहीं करता।

पारिजात योग :

लग्नेश जिस राशि में हो उस राशि का स्वामी यदि कुंडली में उच्च स्थान या फिर अपने ही घर में हो तो पारिजात योग बनता है। लगभग आधा जीवन बीत जाने के बाद इस योग के प्रभाव दिखाई देने लगते हैं। इस योग से जातक को अपने जीवन में कामयाब हो कर धीमी गति से सफलता के शिखर की प्राप्ति होती है।

अमला योग :

जब चंद्रमा से दसवें स्थान पर कोई शुभ ग्रह स्थित हो तो यह योग बनता है। इस योग से जातक को धन और यश की प्राप्ति होती है।

छत्र योग :

जब जातक की कुंडली में चतुर्थ भाव से दशम भाव तक सभी ग्रह मौजूद हों तब यह योग बनता है। छत्र योग भगवान की छत्रछाया वाला योग माना जाता है। इस योग से जातक को अपने जीवन में निरंतर प्रगति करते हुए उन्नति करते हुए उच्च पदस्थ की प्राप्ति होती है।

बुध आदित्य योग :

जब सूर्य तथा बुध एक साथ कुंडली के किसी भी भाव में स्थित हो तो बुध आदित्य योग का निर्माण हो जाता है। इस योग से जातक को मान-सम्मान, बुद्धि, विशलेषण करने की क्षमता, नेतृत्व करने की क्षमता, वाणी कौशल, संचार कुशलता, सामाजिक प्रतिष्ठा तथा ऐसी ही अन्य कई प्रकार के शुभ लाभ की प्राप्ति होती है।

सिद्धि योग :

कुंडली में वार, नक्षत्र और तिथि के बीच आपसी तालमेल होने पर सिद्धि योग का निर्माण होता है। उदाहरण स्वरूप सोमवार के दिन अगर नवमी अथवा दशमी तिथि हो एवं रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, श्रवण और शतभिषा में से कोई नक्षत्र हो तो सिद्धि योग बनता है। इस योग से जातक को सिद्धि की प्राप्ति होती है।

पुष्कल योग :

यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा लग्नेश के साथ हो तथा यह दोनों जिस राशि में स्थित हों उस राशि का स्वामी ग्रह केन्द्र के किसी घर में स्थित होकर अथवा किसी राशि विशेष में स्थित होने से बलवान होकर लग्न को देख रहा हो तथा लग्न में कोई शुभ ग्रह बैठा हो तो पुष्कल योग बनता है। इस योग से जातक को आर्थिक समृद्धि, व्यवसायिक सफलता तथा सरकार में प्रतिष्ठा तथा प्रभुत्व का पद अदि की प्राप्ति होती है।

महाभाग्य योग :

यदि किसी पुरुष का जन्म दिन के समय का हो तथा उसकी कुंडली में लग्न अर्थात पहला घर, सूर्य तथा चन्द्रमा, तीनों ही विषम राशियों (मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु, कुम्भ) में स्थित हों तो महाभाग्य योग बनता है। यदि किसी स्त्री का जन्म रात के समय का हो तथा उसकी कुंडली में लग्न, सूर्य तथा चन्द्रमा तीनों ही सम राशियों (वृष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर, मीन) में स्थित हों तो ऐसी स्त्री की कुंडली में महाभाग्य योग बनता है। इस योग से जातक को प्रसिद्धि, आर्थिक समृद्धि, प्रभुत्व, उच्च सरकार पद, तथा लोकप्रियता आदि जैसे शुभ फल की प्राप्ति होती है।

शुभ योग :

किसी जातक की कुंडली में अगर राहु छठे भाव में स्थित हो और गुरु केन्द्र में विराजमान हो तो अष्टलक्ष्मी नामक शुभ योग बनता है। इस योग से जातक को कभी भी धन की कमी नहीं रहती।

अधि योग :

यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा तथा लग्न से ६ , ७ अथवा ८वें घर में गुरु, शुक्र अथवा बुध स्थित हों तो अधि योग बनता है। इस योग से जातक को प्रभुत्व, प्रतिष्ठा तथा सामाजिक प्रभाव की प्राप्ति होती है।

सुनफा योग :

यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा से अगले घर में कोई ग्रह (अकेले सूर्य को छोड़ कर) स्थित हो तो कुंडली में सुनफा योग बनता है। इस योग से जातक को धन, संपत्ति तथा प्रसिद्धि की प्राप्ति होती है ।

अनफा योग :

यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा से पिछले घर में कोई ग्रह स्थित हो तो कुंडली में अनफा योग बनता है। इस योग से जातक को स्वास्थ्य, प्रसिद्धि तथा आध्यात्मिक विकास की प्राप्ति होती है।

दुर्धरा योग :

यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा से पिछले घर में तथा चन्द्रमा से अगले घर में कोई ग्रह स्थित हो तो कुंडली में दुर्धरा योग बनता है। इस योग से जातक को शारीरिक सुंदरता, स्वास्थ्य, संपत्ति तथा समृद्धि की प्राप्ति होती है।

चन्द्र मंगल योग :

जब किसी कुंडली में चन्द्र तथा मंगल का संयोग (एक साथ बैठे हों या पूरा दृष्टि हो ) बनता है तो चन्द्र मंगल योग बनता है। इस योग से जातक को चन्द्र तथा मंगल के स्वभाव, बल तथा स्थिति आदि के आधार पर विभिन्न प्रकार के शुभ अशुभ फल की प्राप्ति होती है।

पर्वत योग :

किसी कुंडली में केन्द्र के प्रत्येक घर में यदि कम से कम एक ग्रह स्थित हो तो कुंडली में पर्वत योग बनता है। परन्तु कुछ वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि यदि किसी कुंडली में केन्द्र के प्रत्येक घर अर्थात १, ४, ७ तथा १०वें घर में कम से कम एक ग्रह स्थित हो तथा कुंडली के ६ तथा ८वें घर में कोई भी ग्रह स्थित न हो तो पर्वत योग बनता है। इस योग से जातक को धन, संपत्ति, प्रतिष्ठा तथा सम्मान आदि की प्राप्ति होती है।

वेशि योग :

यदि किसी कुंडली में सूर्य से अगले घर में कोई ग्रह स्थित हो तो कुंडली में वेशि योग बनता है। इस योग से जातक को अच्छा चरित्र, यश तथा प्रसिद्धि की प्राप्ति होती है।

वाशि योग :

किसी कुंडली में सूर्य से पिछले घर में कोई ग्रह स्थित हो तो कुंडली में वाशि योग बनता है। इस योग से जातक को स्वास्थ्य, प्रसिद्धि, आर्थिक समृद्धि तथा किसी सरकारी संस्था में लाभ एवम प्रभुत्व का पद अदि की प्राप्ति होती है।

उभयचरी योग :

यदि किसी कुंडली में सूर्य से पिछले घर में तथा सूर्य से अगले घर में कोई ग्रह स्थित हो तो कुंडली में उभयचरी योग बनता है। इस योग से जातक को नाम, यश, प्रसिद्धि, समृद्धि, प्रभुत्व का पद आदि की प्राप्ति होती है।

उभयचरी योग :

यदि किसी कुंडली में सूर्य से पिछले घर में तथा सूर्य से अगले घर में कोई ग्रह स्थित हो तो कुंडली में उभयचरी योग बनता है। इस योग से जातक को नाम, यश, प्रसिद्धि, समृद्धि, प्रभुत्व का पद आदि की प्राप्ति होती है।

सिंघासन योग :

यदि सभी ग्रह दूसरे, तीसरे, छठे, आठवें और बारहवें घर में बैठ जाए तो कुंडली में सिंघासन योग बनता है। इस योग से जातक को नाम वह शासन अधिकार की प्राप्ति होती है।

चतुःसार योग :

यदि कुंडली में ग्रह मेष, कर्क तुला और मकर राशि में स्थित हो तो ये योग बनता है। इस योग से जातक को जीवन में इच्छित सफलता प्राप्त होती है और वह किसी भी समस्या से आसानी से बाहर आ जाता है।

श्रीनाथ योग :

यदि सप्तम भाव का स्वामी दशम भाव में उच्च की स्थिति में नवम भाव के स्वामी के साथ हो तब श्रीनाथ योग निर्मित होता है। योग में सम्मिलित ग्रहों के नवमांश में नीच के होने और किसी अन्य दूषित ग्रह की दृष्टि से ये योग कमजोर होता है। इस योग से जातक को धन, नाम, यश, वैभव की प्राप्ति होती है।

विपरीत राजयोग :

यदि त्रिक स्थानों के स्वामी त्रिक स्थानों में हों या युति अथवा दृष्टि संबंध बनते हों तो विपरीत राजयोग बनता है। इस योग से जातक को अपर धन दौलत, सुख और खुशहाली की प्राप्ति होती है। ज्योतिष ग्रंथों में बताया गया है कि अशुभ फल देने वाला ग्रह जब स्वयं अशुभ भाव में होता है तो अशुभ प्रभाव नष्ट हो जाते है।

हंस योग :

यदि बृहस्पति केंद्र भाव में होकर मूल त्रिकोण स्वगृही (धनु या मीन राशि में) अथवा उच्च राशि (कर्क राशि) का हो तब हंस योग होता है। यह योग से जातक को पुण्य कर्म करने वाला, सुन्दर, दयालु, मिलसार, विनम्र, हंसमुख, धन-सम्पति और शास्त्रों का ज्ञाता बनता है।

विधुत योग :

यदि लाभेष परमोच्च होकर शुक्र के साथ हो लग्नेश केन्द्र में हो तो विधुत योग होता है। इसमें जातक का भाग्योदय विधुत गति से होता है।

नागयोग :

पंचमेष ९वें स्थान में हो तथा एकादशेश चन्द्र के साथ धनभाव में हो तो नागयोग होता है। इस योग से जातक को धनवान तथा भाग्यवान बनाता है।

नदी योग :

५वं तथा ११वं भाव पापग्रह युक्त हों किन्तु द्वितीय व अष्टम भाव पापग्रह से मुक्त हों तो नदी योग बनता है। यह योग जातक को उच्च पदाधिकारी बनाता है।

विश्वविख्यात योग :

लग्न, पंचम, सप्तम, नवम, दशम भाव शुभ ग्रहों से युक्त या दृश्ट हो तो विश्वविख्यात योग बनता है। इस योग वाला जातक विश्व में विख्यात होता है।

अधेन्द्र योग :

यदि सभी ग्रह पांच से ग्यारह भाव के बीच ही हों तो अधेन्द्र योग होता है। यह योग जातक को सर्वप्रिय, सुन्दर देहवाला व समाज में प्रधान बनता है।

चक्रयोग :

यदि किसी कुंडली में १ से ६ राशि के बीच सभी ग्रह हों तो चक्रयोग होता है। यह योग जातक को मंत्री पद प्रदान करने वाला होता है।

भास्कर योग :

सूर्य से दूसरे भाव में बुध, बुध से 11वें भाव में चन्द्र और चन्द्र से त्रिकोण में गुरू हो तो भास्कर योग होता है। यह योग जातक को प्रखरबुद्वि, धन, यष, रूप, पराक्रम, षास्त्र ज्ञान, गणित व गंधर्व विधा का जानकार बनता है।

चक्रवती योग :

यदि कुंडली के नीच ग्रह की राशि का स्वामी या उसकी उच्च राषि का स्वामी लग्न में हो या चन्द्रमा से केन्द्र में हो तो जातक चक्रवती सम्राट या बड़ा धार्मिक गुरूनेता होता है।

कुबेर योग :

गुरू, चन्द्र, सूर्य पंचमस्थ, तृतीयस्थ व नवमस्थ हो कर बलवान सिथति में हो तो कुबेर योग बनता है। यह योग वाला जातक कुबेर के समान धनी व वैभवयुक्त होता है।

 

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ज्योतिष आचार्या
ममता वशिष्ट
अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
कालका ज्योतिष अनुसन्धान संसथान

 

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