जानिए ग्रहों का जीवन पर प्रभाव (Janiye Grahon Ka Jeevan Par Prabhav)
भारतीय संस्कृति में ज्योतिष का बहुत महत्त्व है। ज्योतिष अर्थात ज्योति + इश अर्थात इश की ज्योति अर्थात इश के नेत्र जिनसे इश इस श्रृष्टि का संचार व नियंत्रण करते है |यह आज का अध्युनिक विज्ञान भी मानता है के हर ग्रह की हर जीव की हर प्राणी की हर अणु की अपनी एक निश्चित नकारात्मक व सकारात्मक उर्जा होती है | अगर हम उस उर्जा का सही संतुलन अपने जीवन में बना ले तो वही ईश्वर की प्राप्ति का सच्चा साधन है | यहाँ हम चर्चा करेंगे ग्रहों का जीवन पर क्या पड़ता है। आइये जाने की कोनसा ग्रह किस राशी पर उच्च का होकर शुभ फल देता हें और किस राशी में नीच का होकर अशुभ फल देता हें।
- सूर्य मेष राशी में उच्च का होकर शुभ फल देता है और तुला राशी में नीच का होकर अशुभ फल देता है।
- चन्द्र वृषभ राशी में उच्च का होकर शुभ फल देता है और वृश्चिक राशी में नीच का होकर अशुभ फल देता है।
- मंगल मकर राशी में उच्च का होकर शुभ फल देता है और कर्क राशी में नीच का फल होकर अशुभ फल देता है।
- बुध कन्या राशी में उच्च का होकर शुभ फल देता है का और मीन राशी में नीच का होकर अशुभ फल देता है।
- गुरु कर्क राशी में उच्च का होकर शुभ फल देता है और मकर राशी में नीच का होकर अशुभ फल देता है।
- शुक्र मीन राशी में उच्च का होकर शुभ फल देता है और कन्या राशी में नीच का होकर अशुभ फल देता है।
- शनि तुला राशी में उच्च का होकर शुभ फल देता है और मेष राशी में नीच का होकर अशुभ फल देता है।
- राहू मिथुन राशी में उच्च का होकर शुभ फल देता है और धनु राशी में नीच का होकर अशुभ फल देता है।
- केतु धनु राशी में उच्च का होकर शुभ फल देता है और मिथुन राशी में नीच का होकर अशुभ फल देता है।
- सिंह एवं कुंभ राशी में कोई भी ग्रह उच्च या नीच का नहीं होता है।
जातक के शरीर में ग्रहों का अपना एक मुख्य स्थान है जेसे सूर्य को शरीर कहा गया है, चन्द्र को मन, मंगल को सत्व, बुध को वाणी-विवेक, गुरु को ज्ञान एवं सुख, शुक्र को काम एवं वीर्य, शनि को दुःख,कष्ट एवं परिवर्तन तथा राहू और केतु को रोग एवं चिंता का करक माना जाता हें..
आइए जानते हैं ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार किस ग्रह दोष से मिलता है रोग एवं नकारात्मक प्रभाव
सूर्य – सूर्य पिता, आत्मा समाज में मान, सम्मान, यश, कीर्ति, प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा का करक होता है। इसकी राशि है सिंह। कुंडली में सूर्य के अशुभ होने पर पेट, आँख, हृदय का रोग हो सकता है साथ ही सरकारी कार्य में बाधा उत्पन्न होती है। इसके लक्षण यह है कि मुँह में बार-बार बलगम इकट्ठा हो जाता है, सामाजिक हानि, अपयश, मनं का दुखी या असंतुस्ट होना, पिता से विवाद या वैचारिक मतभेद सूर्य के पीड़ित होने के सूचक है।
चन्द्रमा – चन्द्रमा माँ का सूचक है और मनं का करक है। इसकी कर्क राशि है। कुंडली में चंद्र अशुभ होने पर माता को किसी भी प्रकार का कष्ट या स्वास्थ्य को खतरा होता है, दूध देने वाले पशु की मृत्यु हो जाती है। स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है। घर में पानी की कमी आ जाती है या नलकूप, कुएँ आदि सूख जाते हैं मानसिक तनाव, मन में घबराहट, तरह-तरह की शंका मनं में आती है। व्यक्ति के मन में आत्महत्या करने के विचार बार-बार आते रहते हैं।
मंगल – मंगल सेना पति होता है,भाई का द्योतक और रक्त का भी करक माना गया है। इसकी राशि मेष और वृश्चिक है। कुंडली में मंगल के अशुभ होने पर भाई, पटीदारो से विवाद, रक्त सम्बन्धी समस्या, नेत्र रोग, उच्च रक्तचाप, क्रोधित होना, उत्तेजित होना, वात रोग और गठिया हो जाता है। रक्त की कमी या खराबी वाला रोग हो जाता। व्यक्ति क्रोधी स्वभाव का हो जाता है। मान्यता यह भी है कि बच्चे जन्म होकर मर जाते हैं।
बुध – बुध व्यापार व स्वास्थ्य का करक माना गया है। यह मिथुन और कन्या राशि का स्वामी है। बुध वाक् कला का भी द्योतक है। विद्या और बुद्धि का सूचक है। कुंडली में बुध की अशुभता पर दाँत कमजोर हो जाते हैं। सूँघने की शक्ति कम हो जाती है। गुप्त रोग हो सकता है। व्यक्ति वाक् क्षमता भी जाती रहती है। नौकरी और व्यवसाय में धोखा और नुक्सान हो सकता है।
वृहस्पति – वृहस्पति की दो राशि है धनु और मीन | कुंडली में वृहस्पति के अशुभ प्रभाव में आने पर सिर के बाल झड़ने लगते हैं। परिवार में बिना बात तनाव, कलह – क्लेश का माहोल होता है। सोना खो जाता या चोरी हो जाता है। आर्थिक नुक्सान या धन का अचानक व्यय,खर्च सम्हलता नहीं, शिक्षा में बाधा आती है। अपयश झेलना पड़ता है। वाणी पर सयम नहीं रहता।
शुक्र – शुक्र दो राशिओं का स्वामी है वृषभ और तुला। शुक्र तरुण है, किशोरावस्था का सूचक है, मौज मस्ती,घूमना फिरना,दोस्त मित्र इसके प्रमुख लक्षण है |
कुंडली में शुक्र के अशुभ प्रभाव में होने पर मन में चंचलता रहती है और एकाग्रता नहीं रह पाती। खान पान में अरुचि, भोग विलास में रूचि और धन का नाश होता है। अँगूठे का रोग हो जाता है। अँगूठे में दर्द बना रहता है। चलते समय अगूँठे को चोट पहुँच सकती है। चर्म रोग हो जाता है। स्वप्न दोष की शिकायत रहती है।
शनि – शनि दो राशिओं का स्वामी है मकर एवं कुम्भ। शनि की गति धीमी है। इसके दूषित होने पर अच्छे से अच्छे काम में गतिहीनता आ जाती है | कुंडली में शनि के अशुभ प्रभाव में होने पर मकान या मकान का हिस्सा गिर जाता या क्षतिग्रस्त हो जाता है। अंगों के बाल झड़ जाते हैं। शरीर में विशेषकर निचले हिस्से में ( कमर से नीचे ) हड्डी या स्नायुतंत्र से सम्बंधित रोग लग जाते है। वाहन से हानि या क्षति होती है। काले धन या संपत्ति का नाश हो जाता है। अचानक आग लग सकती है या दुर्घटना हो सकती है।
राहु – राहु जातक को मानसिक तनाव, आर्थिक नुक्सान, स्वयं को ले कर ग़लतफहमी,आपसी तालमेल में कमी, बात बात पर आपा खोना, वाणी का कठोर होना व आप्शब्द बोलना, हाथ के नाखून अपने आप टूटना, राजक्ष्यमा रोग के लक्षण, वाहन दुर्घटना, उदर कस्ट, मस्तिस्क में पीड़ा, भोजन में बाल दिखना, अपयश की प्राप्ति, सम्बन्ध ख़राब होना, दिमागी संतुलन ठीक न रहना, शत्रु बाधा आदि देता है।
केतु – कुंडली में केतु के अशुभ प्रभाव में होने पर चर्म रोग, मानसिक तनाव, आर्थिक नुक्सान, स्वयं को ले कर ग़लतफहमी, आपसी तालमेल में कमी, बात बात पर आपा खोना, वाणी का कठोर होना व आप्शब्द बोलना, जोड़ों का रोग, मूत्र रोग, किडनी संबंधी रोग, संतान को पीड़ा, वाहन दुर्घटना,उदर कस्ट, मस्तिस्क में पीड़ा आथवा दर्द रहना, अपयश की प्राप्ति, सम्बन्ध ख़राब होना, दिमागी संतुलन ठीक नी रहना, शत्रुओं से मुश्किलें बढ़ने की संभावना रहती है।
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ज्योतिष आचार्या
ममता वशिष्ट
अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
कालका ज्योतिष अनुसन्धान संसथान