रुद्राक्ष एवं इसका महत्व (Rudraksh Evam Iska Mahatva)

         रुद्राक्ष दो शब्दों से बना है ” रूद्र” अथार्थ अन्तरिक्ष के देवता को रूद्र कहते है जिसके विषय में निरुक्त में भाष्कराचार्य ने सपष्ट किया है की अन्तरिक्ष में स्थित रूद्र मेघ और विद्युत् के माध्यम से कार्य करता है। “अक्ष ” नेत्र या आँख से सम्बंधित किया गया है। यहाँ […]

डॉ: नारायण दत्त श्रीमाली (निखिलेश्वरानंद) जी की जीवनी (Dr. Narayan Dutt Shrimali (Nikhileshwaranand) Ji Ki Jeevni)

ॐ गुं गुरूभ्यो नमः ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरूभ्यो नमः           सद्गुरूदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली (निखिलेश्वरानंद) जी का जन्म २१ अप्रैल १९३५ में राजस्थान में खरन्टिया क्षेत्र में हुआ। गुरुदेव जी के पिता श्री जी का नाम पंडित मुल्तान चन्द्र श्रीमाली था। आप का सन्यासी नाम श्री स्वामी निखिलेश्वरानंद जी […]

बिल्ली की जेर या नाल (Billi Ki Jer Ya Naal)

          धन के आभाव या धनहीनता के कारन व्यक्ति कई सुखों से वंचित रह जाता है। हर व्यक्ति के मन की यह इच्छा होती है कि उसके पास इतना सारा धन हो की वह उससे अपनी सभी इच्छाएं पूर्ण कर सके। दूसरी तरफ कुछ ऐसे लोग भी होते है जिनके पास […]

यज्ञ क्या है (Yagya Kya Hai)

          यज्ञ का अर्थ है- शुभ कर्म। श्रेष्ठ कर्म। सतकर्म। वेदसम्मत कर्म। सकारात्मक भाव से ईश्वर-प्रकृति तत्वों से किए गए आह्‍वान से जीवन की प्रत्येक इच्छा पूरी होती है। यज्ञ भारतीय संस्कृति का प्रतीक है। हिन्दू धर्म में जितना महत्व यज्ञ को दिया गया है उतना ओर किसी को नहीं दिया […]

शिष्यता एवं सात सूत्र (Shishyata Evam Saat Sutra)

          शिष्य का तात्पर्य किसी देह से नहीं हैं, शिष्य का तात्पर्य खड़े होकर हाथ जोड़ने से नहीं हैं, शिष्य का तात्पर्य कोई दीक्षा लेने से भी नहीं हैं। यह तो एक भाव हैं कि हम दीक्षा लेकर अपने आपको पूर्ण रूप से गुरु चरणों में विसर्जित करके गुरु से एकाकार […]

१६ कलायें (16 Kalayen)

          यह समस्त संसार द्वंद्व धर्मों से आपूरित हैं, जितने भी यहाँ प्राणी हैं, वे सभी इन द्वंद्व धर्मों के वशीभूत हैं, किन्तु इस कला से पूर्ण व्यक्ति प्रकृति के इन बंधनों से ऊपर उठा हुआ होता हैं। वाक् सिद्धि : जो भी वचन बोले जाए वे व्यवहार में पूर्ण हो, […]

पुराणों में ३६ नरक (Purano Mein 36 Narak)

          हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों में 36 तरह के मुख्य नर्कों का वर्णन किया गया है। पुराणों के अनुसार स्वर्ग वह स्थान होता है जहां देवता रहते हैं और अच्छे कर्म करने वाले इंसान की आत्मा को भी वहां स्थान मिलता है, इसके विपरीत बुरे काम करने वाले लोगों को […]

हस्त मुद्रा चिकित्सा (Hast Mudra Chikitsa)

          पांच तत्वों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश से बना मनुष्य का शरीर अनन्त रहस्योंसे भरा हुआ है। शरीर के रोगों को जड़ से समाप्त करने हेतु योग, रेकी, मंत्र, तंत्र, ध्यान और हस्त मुद्रा अदि विशेष रूप से प्रयोग होते हैं। शरीर की अपनी एक मुद्रामयी भाषा है। जिसे […]

सनातन में समय की सूक्षम्ता (Sanatan Mein Samay Ki Sukshamta)

          हमारे सनातन संस्कृति महान है। इसमें समय को भी सूक्षम्ता से विराट रूप में बांटा गया है। पहले कुछ नही था। केवल् शून्य था। जब विराट पुरुष का जन्म हुआ और काल चक्र की उतपत्ति हुई तब काल का ज्ञान हुआ ये काल( समय ) इस प्रकार है। क्रति = […]

श्री कृष्ण जी के ५१ नामों के अर्थ (Shri Krishna Ji ke 51 Naamo Ke Arth)

कृष्ण : सब को अपनी ओर आकर्षित करने वाला.। गिरिधर : गिरी : पर्वत ,धर : धारण करने वाला। अर्थात गोवर्धन पर्वत को उठाने वाले। मुरलीधर : मुरली को धारण करने वाले। पीताम्बर धारी : पीत :पिला, अम्बर:वस्त्र। जिस ने पिले वस्त्रों को धारण किया हुआ है। मधुसूदन : मधु नामक दैत्य को मारने वाले। […]